आवाज डेली
हजारीबाग। दो सौ साल पहले शहर के बीच से होकर एक नदी गुजरती थी, जिसे लोग चंपा नदी के नाम से जानते थे। इसी नदी के तट का इस्तेमाल शहर और आसपास के लोग श्मशान घाट के रूप में किया करते थे । तब यहां श्मशान काली मंदिर भी स्थापित था।
लेकिन आज न चंपा नदी और न श्मशान घाट का ही अस्तित्व बचा है। लेकिन कालीमंदिर अवश्य मौजूद है, जिसे कालीबाडी मंदिर के नाम से शहरवासी जानते हैं। वह दौर ऐसा था कि श्मशान घाट पर बसा यह मंदिर साधना का केन्द्र हुआ करता था।
लेकिन आबादी ब़ढ़ने के साथ आज चंपा नदी नाले में बदल चुकी है और अंग्रेजों के समय में इसे बांधकार नाले के रूप में तब्दील कर दिया गया था। मंदिर के आसपास बड़ी आबादी बसती चली गयी। आज भी मंदिर के आसपास की खुदायी में मिलनेवाले अवशेष यह बताते हैं कि यहां मुक्तिधाम रही होगी।
आज मुक्तिधाम मौजूदा स्थल से दो किमी. दूर खिरगांव में घिसक कर पहुँच चुका है और यहां मुक्तिधाम में भव्य श्मशान काली मंदिर और उसमें मां काली की प्रतिमा स्थापित है। यहां की पूजा भी खास होती है। यहां की पूजा की विधि और मां का स्वरूप भक्तों को अपनी ओर खिंचती है।
तभी भक्तों की भीड़ भी यहां काफी अधिक रहती है। इस साल भी पूजा को लेकर लेकर बाबा भूतनाथ मंडली न्यास ने तैयारी कर रखी है। इसके लिये मंदिर को सजाया जा रहा है तो वहीं कोरोना को लेकर सरकार के गाइडलाइंस का कैसे पालन हो इसकी भी व्यवस्था कर रखी गयी है।
मुख्य पूजा दीपावली की रात 14 को होगी। आयोजन समिति के मनोज गुप्ता ने बताया कि 13 को रात्रि 8.30 बजे मां का आह्वान होगा। वहीं 14 को रात्रि 8 बजे से पूजा शुरू होकर 11.53 बजे बलि प्रथा पूरी होने तक चलेगी। सरथ ही इस दिन संध्या 6 बजे से रात्रि 12 बजे तक भजन संध्या और संध्या 7 बजे से 11.30 बजे रात तक प्रसाद वितरण का कार्यक्रम भी साथ- साथ चलेगा। वहीं रात्रि में बलि के बाद का महाभोग प्रसाद का वितरण 15 को सुबह 4 बजे से रात 9 बजे तक चलेगी।